बीजेपी में आ कर धूल गए दीपक के सारे दाग, अब नहीं होगी उत्तरकाशी में कोई जांच…बीजेपी जिलाध्यक्ष के पत्र से खुली संगठन की अहमियत की पोल..

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देहरादून। भारतीय जनता पार्टी (BJP) में इन दिनों आंतरिक असहमति और संगठनात्मक निर्णयों को लेकर उठ रहे सवाल सुर्खियों में हैं। कभी पार्टी में संगठन को सर्वोच्च मानते हुए नेता नए चेहरों को शामिल करने या न करने का निर्णय लेते थे, लेकिन अब हालात बदलते नज़र आ रहे हैं। ग्रासरूट स्तर पर पदाधिकारियों का प्रभाव और प्रदेश स्तर के पत्रों का महत्व घटता दिख रहा है।

ताज़ा मामला उत्तरकाशी से सामने आया है, जहां बीजेपी के जिला अध्यक्ष नागेंद्र चौहान ने प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को एक पत्र लिखकर दीपक बिजलवाण को पार्टी में शामिल करने का विरोध दर्ज कराया था। यह पत्र 4 अगस्त को भेजा गया था, जिसमें जिला अध्यक्ष ने बिजलवाण पर गंभीर आरोप लगाते हुए स्पष्ट किया था कि उन्हें पार्टी में प्रवेश न दिया जाए। पत्र में लिखे गए आरोपों में भ्रष्टाचार, अनुशासनहीनता और संगठन विरोधी गतिविधियों का ज़िक्र बताया जा रहा है।

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इस पत्र की गंभीरता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसमें न सिर्फ वर्तमान जिला अध्यक्ष के हस्ताक्षर थे, बल्कि पूर्व अध्यक्ष और कई अन्य वरिष्ठ पदाधिकारियों के भी समर्थन हस्ताक्षर शामिल थे। इसके बावजूद, पार्टी हाईकमान ने जिला संगठन की राय को नज़रअंदाज़ करते हुए बिजलवाण का पार्टी में स्वागत कर लिया।

इस निर्णय के बाद संगठन के भीतर असंतोष की लहर है। कई स्थानीय कार्यकर्ताओं का मानना है कि अब संगठन की आवाज़ को सुना नहीं जा रहा और निर्णय सीधे शीर्ष नेतृत्व से थोपे जा रहे हैं। इससे कार्यकर्ताओं में हताशा और नाराज़गी पनप रही है।

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इस पूरे घटनाक्रम पर कांग्रेस ने भी भाजपा पर हमला बोला है। कांग्रेस नेताओं का कहना है कि जब तक कोई नेता विपक्षी दल में होता है, तब तक बीजेपी उसे भ्रष्टाचार और अनियमितताओं के आरोपों से घेरती है, लेकिन जैसे ही वह ‘भाजपा की वाशिंग मशीन’ में आता है, वह नेता ‘पाक-साफ’ घोषित कर दिया जाता है। कांग्रेस ने तंज कसते हुए कहा कि बीजेपी के पास एक विशेष सफाई मशीन है, जो भ्रष्टाचार के दाग तुरंत मिटा देती है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह घटना बीजेपी की आंतरिक लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर सवाल खड़े करती है। पार्टी में कभी ‘संगठन सर्वोपरि’ की नीति मानी जाती थी, लेकिन अब स्थानीय नेतृत्व के सुझावों को दरकिनार कर ऊपर से फैसले थोपने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। इससे न केवल कार्यकर्ताओं का मनोबल गिर सकता है, बल्कि पार्टी के भीतर गुटबाज़ी भी तेज हो सकती है।

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इस मामले ने यह स्पष्ट कर दिया है कि उत्तराखंड बीजेपी में हालात तेजी से बदल रहे हैं। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या शीर्ष नेतृत्व जिला संगठन के विरोध को तवज्जो देता है या फिर यह मामला भी समय के साथ ठंडे बस्ते में चला जाएगा। फिलहाल, बिजलवाण की एंट्री ने बीजेपी के भीतर खामोश बगावत की चिंगारी भड़का दी है, जिसका असर आने वाले चुनावी समीकरणों पर भी पड़ सकता है।