प्रमोशन के बाद मन चाहे मेडिकल कॉलेज में मिल सकती है कई प्राचार्यों को नियुक्ति, सुगम दुर्गम व्यवस्था को दिखाया जा सकता है ठेंगा ?

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देहरादून। लंबे इंतजार और जटिल प्रक्रिया के बाद आखिरकार उत्तराखंड के मेडिकल कॉलेजों को स्थाई प्राचार्य मिल गए हैं। प्रदेश सरकार ने सात अधिकारियों की विभागीय प्रोन्नति समिति (डीपीसी) के बाद उन्हें प्राचार्य पद पर प्रमोशन दे दिया है। अब प्रमोशन के बाद उन्हें तबादला करते हुए विधिवत नियुक्ति की तैयारी चल रही है।

माना जा रहा है कि सरकार अब इन प्राचार्यों की तैनाती तय करते समय “सुगम और दुर्गम सेवाओं” के संतुलन का ध्यान रखेगी, ताकि नए प्राचार्यों का मनोबल बना रहे और वे प्रदेश की चिकित्सा शिक्षा व्यवस्था को बेहतर दिशा दे सकें।


प्राचार्यों में मनचाही पोस्टिंग की चर्चा

सूत्रों के मुताबिक, प्रमोशन पाए कुछ प्राचार्यों ने अपने करीबी साथियों के बीच इस बात का दावा भी किया है कि उनकी मनचाही पोस्टिंग पहले ही सुनिश्चित हो चुकी है। ऐसे में उन्हें जिस भी कॉलेज में जाने की इच्छा होगी, वहीं तैनाती मिल जाएगी। हालांकि, दूसरी ओर ऐसे भी अधिकारी हैं जो इस “सिस्टम” से दूर हैं और उन्हें उनके मनमाफिक स्थान पर नियुक्ति मिलने की संभावना बहुत कम है।

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तैनाती को लेकर असमंजस

सूत्र बताते हैं कि ज्यादातर प्राचार्य इस बात से पहले ही अवगत हैं कि वे वर्तमान में जहां तैनात हैं, वहीं पर उनकी सेवाएं जारी रहेंगी। केवल कुछ चुनिंदा मेडिकल कॉलेजों में ही फेरबदल की संभावना है। खासकर गढ़वाल मंडल के कॉलेज में व्यवस्था परिवर्तन लगभग तय माना जा रहा है।


चिकित्सा शिक्षा व्यवस्था पर असर

मेडिकल कॉलेजों में स्थाई प्राचार्यों की नियुक्ति को लेकर महीनों से कवायद चल रही थी। अब जाकर यह प्रक्रिया पूरी हुई है। चिकित्सा शिक्षा विभाग के अधिकारियों का कहना है कि स्थाई प्राचार्य मिलने से कॉलेजों में प्रशासनिक स्थिरता आएगी। इससे छात्रों की पढ़ाई और फैकल्टी के कामकाज में निरंतरता बनी रहेगी।

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स्थाई प्राचार्यों की तैनाती से मेडिकल कॉलेजों में लंबे समय से चली आ रही “एड-हॉक” व्यवस्था भी खत्म होगी। अब प्राचार्य अपने कार्यकाल की निश्चितता के साथ बेहतर फैसले ले पाएंगे। विभागीय विशेषज्ञों का मानना है कि अगर तैनाती निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से होती है तो इससे राज्य की चिकित्सा शिक्षा व्यवस्था को नई दिशा मिलेगी।


सरकार पर जिम्मेदारी

अब सरकार की जिम्मेदारी है कि वह नियुक्तियों को लेकर संतुलन बनाए। जहां एक ओर प्राचार्यों की उम्मीदें हैं, वहीं दूसरी ओर जनता और छात्रों की निगाहें भी इस प्रक्रिया पर टिकी हैं। स्वास्थ्य सेवाओं की दुर्गम क्षेत्रों तक पहुंच और वहां पर मेडिकल कॉलेजों के बेहतर संचालन की चुनौतियां भी इन नियुक्तियों के जरिए सामने आएंगी।

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निष्कर्ष

कुल मिलाकर, उत्तराखंड के मेडिकल कॉलेजों को स्थाई प्राचार्य मिलना एक सकारात्मक कदम है, लेकिन अब असली परीक्षा सरकार की है। क्या नियुक्तियां निष्पक्ष और दूरदर्शी तरीके से होंगी, या फिर “मनचाही पोस्टिंग” का खेल चलेगा? इसका जवाब आने वाले दिनों में साफ हो जाएगा। फिलहाल, यह जरूर तय है कि स्थाई प्राचार्य मिलने से मेडिकल कॉलेजों में पढ़ाई और प्रशासनिक कामकाज को नई गति मिलेगी।